Powered By Blogger

Friday, September 28, 2012

Analogy.

सिगरेट ..
कभी होठो तक आती है
फिर ज़मीन पर पड़ी ..पैरो से कुचली जाती है ..

जीवन ..
आशा और सच्चाई के बीच
झूलती रह जाती है ..

सिगरेट .. जीवन ..
जलना-बुझना
पल भर उत्थान ... जीवन का अवसान ..

Friday, April 20, 2012

आ जाती जो तुम एक बार..

आ जाती जो तुम एक बार..

ये दिशा कहाँ वीरानी थी,
और कब थे पथ सुनसान पड़े?
जग के पागल भीड़ में भी
कब थे हम अनजान खड़े?

अपने ही उपहास कुटिल ना करते मुझको ज़ार-ज़ार,
आ जाती जो तुम एक बार.


विरह के पहले कैसे थे
और कैसा जहाँ था वो अपना,
दृश्य न फिर से देख सका,
जो तुने दिखाया था सपना.

उन क्षणों को मैं सहेज सकूँ, कर लूं ये नियति स्वीकार,
आ जाती जो तुम एक बार.


न किया कभी जो कहा नही
तुम तो सत की मूर्त अटल,
पर कहा कहाँ तुमने ये होगा
बस सोच रहा मैं ये अविरल

उस पल को भूल के आ जाती, कर अपने ह्रदय का विस्तार 
आ जाती जो तुम एक बार.


कब थी तू खुश इतर मेरे?
कब रहा तुझ बिन मैं पुलकित?
चल फिर आज तय कर लें
किसपे किसका ज्यादा स्वामित.
सुन लेता मैं तेरी सिसकी, सुनती जो तू मेरे उदगार,
आ जाती जो तुम एक बार.

:(

आँखों में आंसू आते हैं लेकिन,
    आंसुओ को आँख क्यों नहीं?
        अरमानो से जुड़े थे जज़्बात,
            अरमानो को जज़्बात क्यों नहीं?
चाहा जहाँ बसाना अपना बसेरा
     ज़मीन मयस्सर नहीं हुई.
          सिमटना कहाँ चाहा अपने दायरों में,
                गम यही की कोई अपने साथ नहीं.

Thursday, January 26, 2012

क्या होता गर ऐसा होता

क्या होता गर ऐसा होता,
क्या होता गर वैसा होता,
मेरी छोटी सी दुनिया का ,
क्या होता गर वो ना होता,

मैं साथ खुद ही के चलती थी,
ना राह कोई दुरूह लगी,
क्या राह कोई चल सकती थी,
मेरे साथ अगर वो ना होता?

क्या बदली थी मेरी दुनिया
जब पास मेरे वो आया था?
जिस प्रेम-सरित से प्यास बुझी
क्या करती गर वो न होता.


अब जबकि वो पास नहीं
क्या भूख नही? क्या प्यास नही?
पर क्या इस मंजर से इतर
कोई और ही किस्सा बयां होता?


कोई राह सही बढ़ जाती हूँ
कोई ग़लत दिखे लड़ जाती हूँ
पर जो पल मैंने छोड़ दिए?
उन ना के बदले हाँ होता?


कैसे समझू क्या मिला मुझे
तेरे जाने से क्या छोड़ दिया?
अपना मोल लगा पाती
जो तू आज यहाँ होता.