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Tuesday, February 2, 2016

ग़म

आँखों में आंसू आते हैं लेकिन,
    आंसुओ को आँख क्यों नहीं?
        अरमानो से जुड़े थे जज़्बात,
            अरमानो को जज़्बात क्यों नहीं?
चाहा जहाँ बसाना अपना बसेरा
     ज़मीन मयस्सर नहीं हुई.
          सिमटना कहाँ चाहा अपने दायरों में,
                गम यही की कोई अपने साथ नहीं.

ये भीड़ नही रुकती

कुछ भी हो जाए ये भीड़ नही रुकती

वो उठ नहीं सका
मैं देख रहा था
कोई तो रुकेगा
हाथ आगे बढ़ा कर
कोई तो सहारा देगा
उसे उठाएगा, आँसू पोछेगा|

रुकने वाला था बड़ा सादा सा!
उसने किया वो सब
जो एक इंसान करता, दूजे के लिए|

मैं देख रहा था
भीड़ आगे सरक गयी

ठहरे हुए थे बस तीन-
जो गिरा,
जिसने सहारा दिया
और देखने वाला मैं.