आ जाती जो तुम एक बार..
ये दिशा कहाँ वीरानी थी,
और कब थे पथ सुनसान पड़े?
जग के पागल भीड़ में भी
कब थे हम अनजान खड़े?
अपने ही उपहास कुटिल ना करते मुझको ज़ार-ज़ार,
आ जाती जो तुम एक बार.
विरह के पहले कैसे थे
और कैसा जहाँ था वो अपना,
दृश्य न फिर से देख सका,
जो तुने दिखाया था सपना.
उन क्षणों को मैं सहेज सकूँ, कर लूं ये नियति स्वीकार,
आ जाती जो तुम एक बार.
न किया कभी जो कहा नही
तुम तो सत की मूर्त अटल,
पर कहा कहाँ तुमने ये होगा
कब थी तू खुश इतर मेरे?
कब रहा तुझ बिन मैं पुलकित?
चल फिर आज तय कर लें
किसपे किसका ज्यादा स्वामित.
ये दिशा कहाँ वीरानी थी,
और कब थे पथ सुनसान पड़े?
जग के पागल भीड़ में भी
कब थे हम अनजान खड़े?
अपने ही उपहास कुटिल ना करते मुझको ज़ार-ज़ार,
आ जाती जो तुम एक बार.
विरह के पहले कैसे थे
और कैसा जहाँ था वो अपना,
दृश्य न फिर से देख सका,
जो तुने दिखाया था सपना.
उन क्षणों को मैं सहेज सकूँ, कर लूं ये नियति स्वीकार,
आ जाती जो तुम एक बार.
न किया कभी जो कहा नही
तुम तो सत की मूर्त अटल,
पर कहा कहाँ तुमने ये होगा
बस सोच रहा मैं ये अविरल
उस पल को भूल के आ जाती, कर अपने ह्रदय का विस्तार
आ जाती जो तुम एक बार.
कब थी तू खुश इतर मेरे?
कब रहा तुझ बिन मैं पुलकित?
चल फिर आज तय कर लें
किसपे किसका ज्यादा स्वामित.
सुन लेता मैं तेरी सिसकी, सुनती जो तू मेरे उदगार,
आ जाती जो तुम एक बार.

is this really you...oh my gosh...i mean i dnt knw wat to say...:)
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