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Thursday, January 26, 2012

क्या होता गर ऐसा होता

क्या होता गर ऐसा होता,
क्या होता गर वैसा होता,
मेरी छोटी सी दुनिया का ,
क्या होता गर वो ना होता,

मैं साथ खुद ही के चलती थी,
ना राह कोई दुरूह लगी,
क्या राह कोई चल सकती थी,
मेरे साथ अगर वो ना होता?

क्या बदली थी मेरी दुनिया
जब पास मेरे वो आया था?
जिस प्रेम-सरित से प्यास बुझी
क्या करती गर वो न होता.


अब जबकि वो पास नहीं
क्या भूख नही? क्या प्यास नही?
पर क्या इस मंजर से इतर
कोई और ही किस्सा बयां होता?


कोई राह सही बढ़ जाती हूँ
कोई ग़लत दिखे लड़ जाती हूँ
पर जो पल मैंने छोड़ दिए?
उन ना के बदले हाँ होता?


कैसे समझू क्या मिला मुझे
तेरे जाने से क्या छोड़ दिया?
अपना मोल लगा पाती
जो तू आज यहाँ होता.

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