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Wednesday, December 14, 2011

क्या आंसू टिक पायेगा?

आंसू की आयु क्या होती क्या जीवन भर टिक पायेगा?
या नश्वर इन रिश्तों सा समय साथ चुक जायेगा?

कवि की कोरी कल्पना सी
मैंने जीवन था मान लिया,
जिस भी राह पे टिके कदम
उस मंज़िल का गुणगान किया

आस यही कि जिसको थामा वो भी जोर लगाएगा,
नश्वर के पर्याय जग में अनथ की पदवी पायेगा.

एक नहीं था रिश्ता जिसके
साथ चले चलना चाहा.
हर पर्वत पे चढ़ना चाहा,
हर घाटी में ढलना चाहा

हर ओर से आवाज़े आई- मेरे साथ चलो- मेरे साथ चलो
आगे दुनिया बिकती है क्या साथ मेरे बिक पायेगा?


मरीचिका दुनिया लगती अब
कहाँ पड़ा विश्वास कलश
कौन सी इंगित राह पकड़ लूं,
किस ओर बढूँ अब मैं बरबस!


अंतर की आवाज़ सुनूं अपने दुखों के साथ ढलूँ
लेकिन क्या मंजिल आने तक ये आंसूं टिक पायेगा?

तितलियाँ भी बेरंग होने लगी हैं..

ना कोशिश की पाने की तूने जो चाहा,
ना धार लहू की बहाई पथ पे,
लाश के भांति जो पहुचे थे अन्दर,
क्या चाहा था तूने कि ये हो अथ में?

हमेशा जो होता वो होगा तेरा भी,
बाते ये तुझको डुबोने लगी हैं..

कागज़ थे कोरे जो तुने थे पाए,
जीवन के रंगों को तूने बिखेरा
जाती जहाँ तक ये आखें समझ की,
बस अवसाद काली, निशा या सवेरा,

कौन सी धरती थी चुन ली तुमने,
फसलें ही जिसमे खोने लगी हैं..

कुछ पल तो ग़म के होते हैं निहित,
बस उनको पिरोना ही क्या होता मकसद?
क्या प्रीती लगी उनसे ऐ दोस्त तेरी
कि हार में कांटे ही पिरोये हैं अब तक?

समाहित हैं तुझमे वो सारे पल भी
जो इन कांटो की झाड़ में खोने लगे हैं..

कितने ही फूल थे गुज़रे इस पथ से,
कहाँ थे भला तुम जो गंधी न आई?
परिंदा भी कोई न गाना चाहे
भला कौन सी ऐसी युक्ति लगायी?

बेजान बगिया ये सुनसान राहें
ख़ुशी भी यहाँ आके रोने लगी है..
कि तितलियाँ भी बेरंग होने लगी हैं..