जो अब रात काली घना है अंधेरा,
कोई बता दे क्या होगा सवेरा?
कमल के पत्तों पर बूंदों का फिर से
तुम ही बताओ लगेगा बसेरा?
न पंखुड़ी खुलती न चिड़िया है गाती,
न खुशबू बदल के हवा कोई आती|
क्या चाहूं, क्या कर दूं, क्या सोचूं, क्या लिख दूं?
काली है स्याही दिल नापाक मेरा|
जो निकले कलम से दिखाता नहीं हूं
कि अब गीत कोई मैं गाता नहीं हूं
जो हैं पास मेरे खता क्या है उनकी?
ये कालिख भी मेरी, ये अवसाद मेरा|
इस जग से नरमी की ख्वाहिश नहीं है
ये दर्द भला है, ये आंसू सही है|
अगर कोई आए जो ले कर 'तसल्ली'
तुम ही हाथ बढ़ा दो न हो हाथ मेरा|
अभी जान बाकी है मेरे सितमगर,
तुझे आता वही है तू मुझ पर सितम कर,
कि सांस मैं राहत की ले लूं जरा सी
ना ऐसे कर्म है न तू ऐसा कुछ कर!
कोई बता दे क्या होगा सवेरा?
कमल के पत्तों पर बूंदों का फिर से
तुम ही बताओ लगेगा बसेरा?
न पंखुड़ी खुलती न चिड़िया है गाती,
न खुशबू बदल के हवा कोई आती|
क्या चाहूं, क्या कर दूं, क्या सोचूं, क्या लिख दूं?
काली है स्याही दिल नापाक मेरा|
जो निकले कलम से दिखाता नहीं हूं
कि अब गीत कोई मैं गाता नहीं हूं
जो हैं पास मेरे खता क्या है उनकी?
ये कालिख भी मेरी, ये अवसाद मेरा|
इस जग से नरमी की ख्वाहिश नहीं है
ये दर्द भला है, ये आंसू सही है|
अगर कोई आए जो ले कर 'तसल्ली'
तुम ही हाथ बढ़ा दो न हो हाथ मेरा|
अभी जान बाकी है मेरे सितमगर,
तुझे आता वही है तू मुझ पर सितम कर,
कि सांस मैं राहत की ले लूं जरा सी
ना ऐसे कर्म है न तू ऐसा कुछ कर!

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