आंखें निस्तेज कदम शिथिल,
क्या यही चाहत थी मेरी?
चला जहां भी पहुंचा यहां मैं,
क्यों राह छीन ली मेरी?
जब राह मुड़ी तब साथ मुड़ा,
कुछ बस में नहीं था मेरे.
जिसे छोड़ दिया वह लेना था,
कब अवसर थे बहुतेरे?
कह देते 'वहां' जाओगे तो,
मन को मना लेता अपने.
क्यों असाध्य की कल्पना में,
दिखाएं मोहक सपने?
भूख मिटे और और तन ढक ले,
क्या चाहत थी इतनी सी?
रुदन की जब बेला आनी थी,
तो क्यों दी बत्तीसी?
हंसना सिखलाया ही क्यों,
जब काम नहीं आ पाए?
मंजिल ही दिखला दे तू अब,
क्यों मुझको भरमाए?
कष्टों से नहीं भाग रहा,
लेकिन वो हो राहों में.
यह बतलाओ क्यों आते हैं,
सब उठके मेरी बाहों में.
मैं तो हूं ही दुष्ट,
कि मुझ को सबक सिखलाए तू.
पर जो मेरे साथ हैं उनको,
क्यों रुलाने पर है उतारू?
काम करो एक, मत सारे तुम
आज ही ले लो मुझसे!
जब प्रयोग में नहीं है आना
क्यों बोझ ढुलाए मुझसे.
और करो एक काम कि मुझको
जुदा करो डाली से.
पेड़ की क्या गलती जब फल में
चोट लगी माली से.
क्या यही चाहत थी मेरी?
चला जहां भी पहुंचा यहां मैं,
क्यों राह छीन ली मेरी?
जब राह मुड़ी तब साथ मुड़ा,
कुछ बस में नहीं था मेरे.
जिसे छोड़ दिया वह लेना था,
कब अवसर थे बहुतेरे?
कह देते 'वहां' जाओगे तो,
मन को मना लेता अपने.
क्यों असाध्य की कल्पना में,
दिखाएं मोहक सपने?
भूख मिटे और और तन ढक ले,
क्या चाहत थी इतनी सी?
रुदन की जब बेला आनी थी,
तो क्यों दी बत्तीसी?
हंसना सिखलाया ही क्यों,
जब काम नहीं आ पाए?
मंजिल ही दिखला दे तू अब,
क्यों मुझको भरमाए?
कष्टों से नहीं भाग रहा,
लेकिन वो हो राहों में.
यह बतलाओ क्यों आते हैं,
सब उठके मेरी बाहों में.
मैं तो हूं ही दुष्ट,
कि मुझ को सबक सिखलाए तू.
पर जो मेरे साथ हैं उनको,
क्यों रुलाने पर है उतारू?
काम करो एक, मत सारे तुम
आज ही ले लो मुझसे!
जब प्रयोग में नहीं है आना
क्यों बोझ ढुलाए मुझसे.
और करो एक काम कि मुझको
जुदा करो डाली से.
पेड़ की क्या गलती जब फल में
चोट लगी माली से.

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