आंसू की आयु क्या होती क्या जीवन भर टिक पायेगा?
या नश्वर इन रिश्तों सा समय साथ चुक जायेगा?
कवि की कोरी कल्पना सी
मैंने जीवन था मान लिया,
जिस भी राह पे टिके कदम
उस मंज़िल का गुणगान किया
आस यही कि जिसको थामा वो भी जोर लगाएगा,
नश्वर के पर्याय जग में अनथ की पदवी पायेगा.
एक नहीं था रिश्ता जिसके
साथ चले चलना चाहा.
हर पर्वत पे चढ़ना चाहा,
हर घाटी में ढलना चाहा
हर ओर से आवाज़े आई- मेरे साथ चलो- मेरे साथ चलो
आगे दुनिया बिकती है क्या साथ मेरे बिक पायेगा?
मरीचिका दुनिया लगती अब
कहाँ पड़ा विश्वास कलश
कौन सी इंगित राह पकड़ लूं,
किस ओर बढूँ अब मैं बरबस!
अंतर की आवाज़ सुनूं अपने दुखों के साथ ढलूँ
लेकिन क्या मंजिल आने तक ये आंसूं टिक पायेगा?
