No matter what you are, where you go.. you look things, feel them and make your own perception. So do I.
Here is what I feel and what I want make others feel..
Monday, January 10, 2011
क्यों हार न मानूँ?
क्यों हार न मानूँ?
हाथों के आगे अँधेरा है खाई पीछे पग मेरा पग बोझिल होते अब मेरे.
होठों पे अत्रिप्य प्यास आखों में अदृश्य आस निज झिलमिल होते सब मेरे आधार कहाँ कि जिससे अपना पथ पहचानूँ?
है रहा कौन तृप्त इस जगत में,खुद अपनी किसको है पहचान यहाँ
ReplyDeleteअंधियारे के आगे ताको पथिक, झीना सा होगा एक द्वार वहाँ....