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Thursday, October 11, 2018

आशंकित

एक जरा सी आहट आई,
दूर सही थी मुझसे.
पर उमंग सा जगा मन में,
चौक पड़ा कौतुक से.

क्या कोई है आता यहां पर
जब उठता निद्रा से?
हाथ पकड़ कर पार लगाता
जो विषाद में बासे?

क्या कोई है और कि जिसका
भाग्य बराबर मेरे?
कोरे सुख की कल्पना में,
सितम सहे बहुतेरे!

या कोई है और कि जिसको
भेजा है कर्ता ने.
उसके शूल में कमी रही तो
और सितम बरसाने.

यही दुबककर देखूंगा कि
कौन है आता इस पथ.
लहू सने मुख्य पंजे हैं या
लहू से है वो लथ-पथ.

आग्रह

आंखें निस्तेज कदम शिथिल,
क्या यही चाहत थी मेरी?
चला जहां भी पहुंचा यहां मैं,
क्यों राह छीन ली मेरी?

जब राह मुड़ी तब साथ मुड़ा,
कुछ बस में नहीं था मेरे.
जिसे छोड़ दिया वह लेना था,
कब अवसर थे बहुतेरे?

कह देते 'वहां' जाओगे तो,
मन को मना लेता अपने.
क्यों असाध्य की कल्पना में,
दिखाएं मोहक सपने?

भूख मिटे और और तन ढक ले,
 क्या चाहत थी इतनी सी?
रुदन की जब बेला आनी थी,
तो क्यों दी बत्तीसी?

हंसना सिखलाया ही क्यों,
जब काम नहीं आ पाए?
मंजिल ही दिखला दे तू अब,
क्यों मुझको भरमाए?

कष्टों से नहीं भाग रहा,
लेकिन वो हो राहों में.
यह बतलाओ क्यों आते हैं,
सब उठके मेरी बाहों में.

मैं तो हूं ही दुष्ट,
कि मुझ को सबक सिखलाए तू.
पर जो मेरे साथ हैं उनको,
क्यों रुलाने पर है उतारू?

काम करो एक, मत सारे तुम
आज ही ले लो मुझसे!
जब प्रयोग में नहीं है आना
क्यों बोझ ढुलाए मुझसे.

और करो एक काम कि मुझको
जुदा करो डाली से.
पेड़ की क्या गलती जब फल में
चोट लगी माली से.

Friday, September 7, 2018

ग्लानि की रात

जो अब रात काली घना है अंधेरा,
कोई बता दे क्या होगा सवेरा?
कमल के पत्तों पर बूंदों का फिर से
तुम ही बताओ लगेगा बसेरा?

न पंखुड़ी खुलती न चिड़िया है गाती,
न खुशबू बदल के हवा कोई आती|
क्या चाहूं, क्या कर दूं, क्या सोचूं, क्या लिख दूं?
काली है स्याही दिल नापाक मेरा|

जो निकले कलम से दिखाता नहीं हूं
कि अब गीत कोई मैं गाता नहीं हूं
जो हैं पास मेरे खता क्या है उनकी?
ये कालिख भी  मेरी, ये अवसाद मेरा|

इस जग से नरमी की ख्वाहिश नहीं है
 ये दर्द भला है, ये आंसू सही है|
अगर कोई आए जो ले कर 'तसल्ली'
तुम ही हाथ बढ़ा दो न हो हाथ मेरा|

अभी जान बाकी है मेरे सितमगर,
तुझे आता वही है तू मुझ पर सितम कर,
 कि सांस मैं राहत की ले लूं जरा सी
 ना ऐसे कर्म है न तू ऐसा कुछ कर!