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Thursday, May 26, 2016

अकवन और मैं..

आज चलते-चलते मुझे दिखी अकवन की झाड़ियाँ
याद आ गए वो बचपन के दिन
जब उसके उड़ते बीजों को पकड़ने के लिए
हम दौड़ा करते थे
वह पाको मामा - पाको मामा कहकर
उसके पीछे भागा करते थे
इन झाड़ों में पाको मामा नहीं थे
इसके बीज नहीं थे
इसके फल नहीं थे
शायद ये इनका घर नही था!
फिर याद आया..घर तो ये मेरा भी नही है!
और यह दिन जो हैं वह बचपन के नहीं हैं..


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